“रिश्तों की उलझनें “

नया साल आ चुका है…. लेकिन लोग वही पुराने और उनकी पुरानी आदतें बरकरार है… 
सोचती हूं कभी तो लोग सोच कर,  अपनी सोच खुद बदले, और दुसरो को समझने की शक्ति बढ़ाने की कोशिश करें…. 
कुछ लोग ऊँचा उठने के लिए किसी भी हद तक गिरने को तैयार है….जो की बहुत बेकार है…. 
 रिश्तों  की जमावट आज कुछ इस तरह हो रही है की बाहर से अच्छी सजावट और अंदर से स्वार्थ की मिलावट हो रही है  
बहुत मेहनत लगती है
          सपनो को सच बनाने में,
हौसला लगता है
          बुलन्दियों को पाने में,
बरसो लगते है जिन्दगी बनाने में,
      और जिन्दगी फिर भी कम पडती है    
रिश्ते निभाने में

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