23 मार्च 1931शहीदी दिवस जिस दिन रात को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की देश-भक्ति को अपराध की संज्ञा देकर फाँसी पर लटका दिया गया। वैसे तो मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह तय की गई थी लेकिन किसी बड़े जनाक्रोश की आशंका से डरी हुई अँग्रेज़ सरकार ने 23 मार्च की रात्रि को ही इन क्रांति-वीरों की जीवनलीला समाप्त कर दी। रात के अँधेरे में ही सतलुज के किनारे इनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया।
लेकिन हँसते हँसते इन वीरों ने अपने देश के लिए अपनी कुर्बानी देदी ! इनकी शाहदत कि याद मे एक कविता –
लिखती हूँ इस कलम से कुछ पंक्तियाँ
उन शहीदों के नाम जो मर मिटे वतन पे बिना जारी किए फरमान।
ना गलती थी उनकी , न ही वह पापी थे,
लेकिन आजादी की लड़ाई लड़ने में सर्वव्यापी थे।
कल का आगाज़ जड़ना था ,
तो किसी को तो फाँसी पे चढ़ना था।
आज़ादी का शब्द लिखा उन्होंनेे अपने लहू से,
और मिट गए वतन के लिए ख़ुशी ख़ुशी से।
उनकी रूह में देशभक्ति थी ,
जिसकी गूँज पूरे भारत देश ने सुनी थी।
नाम में उनके जोश था ,
दिल में आक्रोश था।
देशभक्ति की खातिर हुए लहूलुहान ,
जान देकर अपनी वो जारी कर गए ये फरमान कि देशभक्ति के खातिर हुए हम कुर्बान।