यूं मनाओ तो कहना – मनी एक सार्थक दीवाली है।।।

एक सार्थक दीपावली
वनवास कर लौटें श्रीराम,
अयोध्या को मिला इनाम,
खुशीयों कि प्रतिक्रिया में,
पुरे राज्य को दिया सजा,
दीप जलें पकवान बनें,
दिया सबने हर्षोल्लास को अंजाम।
धरा प्रफुल्लित हुइ देख कर प्रेम पर्व ये आया है
राम चंद्र ने मर्यादा से साक्षात्कार कराया है।।
दीपावली प्रतीक उजाला का
सबके मन को भाता है,
पर आज तम से ढंकी है धरती
अज्ञात मनुष्य रह जाता है।
प्रेम की खातिर राम चंद्र ने
दुष्टों को मार गिराया था,
अब दीप जलाएं, प्रेम बुझ गया
ये क्यों कोई समझ नहीं पाता है?
नवीन वस्त्र व नवीन ऊर्जा
दोनों का समावेश हुआ,
घर-घर सबके मुरत आई
गणेश और लक्ष्मी का आगमन विशेष हुआ।
बनीं मिठाईयां, बनें पकवान,
प्रार्थना थी सबकी हो उनकी हर पीड़ा का समाधान।
पुजा की थाल सजी और सुंदर सी रंगोली आंगन में बनी,
सभी प्रसन्न थे और यूं उनकी दीपावली मनी।।
पर एक कहानी रह गई अधूरी
इससे सब रह गए अनजान,
कई लोग ऐसे भी थे जिनके पास
न थे रहने को मकान।
न दीप जलें न पटाखें फटें
न बनें स्वादिष्ट पकवान,
उनके साहायक मग्न हैं अपनी खुशियों में
और हैं ये जान कर भी अनजान।।
क्यों कोई तम हटाता नहीं द्वेष का?
क्यों कोई दीप जलाता नहीं प्रेम का?
एक नई उम्मीद की रोशनी जरुरतमंद को देना ही खुशहाली है
यूं मनाओ तो कहना – मनी एक सार्थक दीवाली है।।

Article written by

Result icon